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Eid Ekta Aur Halat ke Shikar Logon ki Madat Karne ki Prerna Deti Hay

ईद एकता और हालात के शिकार 

लोगों की मदद करने की प्रेरणा देती है

मुहम्मद शुकरुल्लाह


दीने- इस्लाम के पांच पिलर हैं। ईमान यानी कलमा, नमाज, रोजा, हज और जकात। रमजान महीने का पूरा रोजा हर उस मुसलमान पर अनिवार्य है जो बालिग और दिमागी तौर पर सेहतमंद हो, पागल ना हो। चाहे मर्द हो या औरत। एक माह तक रमजान की मुबारक माह को रोजा इबादत और नमाज की बरकतों से पुर्नूर करने के बाद जब ईद का चांद दिखाई देता है तब सारे इबादत गुजार अपने ऊपर फर्ज किए गए फर्ज रोजे की अदायगी करने की खुशी में खुदा का शुक्र अदा करते हैं।

 


खुदा का शुक्र अदा करने के लिए खुदा ने ईद जैसा दिन इनाम के तौर पर दिया है और उस दिन वो बन्दे को नवाजता भी है। ईद अरबी का शब्द है जिसका अर्थ है अत्यंत प्रसन्नता का प्राप्त होना। ईद का दिन खुशी का दिन है और खुशी बंदों को इनाम में मिलती है। पूरे महीने की तरबीयत नेक बंदों ने पूरी की अकीदत, ईमानदारी और लगन से खुदा के हुक्म पर चलकर गुजारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है। दरअसल ईद तो उन्हीं की होती है जो एहतमाम से रमजान के पूरे रोजे रखने वाले हैं।

 

ईद के दिन खुदा की रहमत पूरे जोश पर होती है, जो बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। पूरे महीने तक बुराइयों से लड़ने के बाद ईद का त्यौहार विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। समाज में फैली नफरत, लालच और अन्याय के खिलाफ यह त्यौहार प्रेम, शांति और भाईचारे का पैगाम लेकर आता है। इस दिन नफरत की हर दीवार गिरा कर लोग आपस में मिल जाते हैं। नमाज में एक साथ अपने पालनहार के सामने खड़े हो होते हैं अमीर और गरीब मालिक और नौकर सब बराबर होते हैं।

 

इस दिन लोगों को जो हिदायत दी जाती है उसका अपना महत्व है। रमजान के इस पाक व मुबारक महीने में हमने जो हिदायत व प्रेरणा ली है उसे आने वाले 11 महीनों में भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए। बुराइयों से लड़ने व भलाइयों को फैलाने का जो सबक हमने इस पाक व मुबारक महीने में पाया है वह हमें जीवन भर याद रखना चाहिए। इस तरह ईद सच्चाई, पाकी, खुशी और प्रेम व मोहब्बत का त्यौहार है। यह त्यौहार हमको पैगाम देता है कि खुदा को एक लम्हे के लिए भी मत भूलो। जरूरतमंदों की सहायता करो, आपस में भेदभाव की भावना भी ना आने दो। साथ ही सामाजिक बुराइयों से दूर रहो। शराब, जुआ लॉटरी बाजी, सट्टा और व्यभिचार से हमेशा के लिए तौबा कर लो।

 

ईद की खुशियां मनाने के पीछे सारे रोजेदारों का एक ही मकसद होता है कि हमने अपने अंदर छुपे शैतान को एक महीने तक अपने कब्जे में रखा और खुदा ने जो इम्तिहान हमारे लिए रखा था उसमें कामयाब हुए। याद रहे शैतान को मारने की ताकत इंसान में नहीं है, खुदा ने शैतान को उसकी नाफरमानी की वजह से सजा दी है। उसका सिर्फ एक ही अहम काम है वह हमें खुदा के बताए हुए नेक रास्ते से भटकाने की बराबर कोशिश करता है। शैतान हमेशा गलत कामों के लिए बरगलाता रहेगा, जो ईमान वाले होते हैं वह गुमराह नहीं होते। हम जिस तरह रमजान के महीने में खुदा की रस्सी मजबूती के साथ थाम कर नेक आमाल में डटे रहते हैं, ऐसे ही रमजान के बाद भी नेकियों और भलाईयों के काम में लगे रहें। अगर हम यह समझें कि पूरे साल और यूं कहें कि पूरी जिंदगी इसी पर अमल करना है तो हमारी दुनिया भी बेमिसाल होगी और जब तक हमारी जिंदगी रहेगी हर दिन हमें ईद के खुशी की अनुभूति होती रहेगी।

 

रोजा रखकर रोजेदार जहां अपने आप को रूहानी और जिस्मानी दोनों एतबार से पाक साफ करता है, वहीं अपने माल की जकात देकर अपने माल को पाक और सुरक्षित करता है। मजहबे- इस्लाम के इस उसूल पर चलने से जहां बुराइयां दूर होती हैं, वहीं जकात से गरीबों का भला होता है। ज़कात सिस्टम एक सुपर डेवलपमेंट मास्टर प्लान है। जो इंसानी समाज में उच्च स्तर और निम्न स्तर पर जिंदगी गुजारने वालों के बीच संतुलन और समानता स्थापित करता है। दरअसल ईद इसी बात की प्रेरणा भी देती है कि हम अच्छे बनें, समाज को अच्छा बनाएं और समाज के कमजोर तबके की मदद करके उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का मौका प्रदान करें।

 

आज दुनिया जिस हालात से गुजर रही है हर कोई इस बात से अवगत है। ऐसे माहौल में हमारी जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई हैं। आज हमें आगे बढ़ कर समाज के हर तबके की मदद करनी होगी। ईद गरीबों, जरूरतमंदों और हालात के शिकार लोगों की मदद करने की प्रेरणा देती है। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जरूरतमंदों के खाने, पहनने की जरूरत पूरी करने के साथ-साथ बीमारों का मुनासिब इलाज भी हो। इस्लाम ने ऐसे काम को नेकी और भलाई का काम करार दिया है। ऐसे कामों को अंजाम देने के लिए इस्लाम ने धार्मिक व्यवस्थाएं की हैं।

ईद की नमाज से पहले सद्का-ए-फित्र अदा करना जरूरी है। यानी घर के हर आदमी की तरफ से एक प्रकार का दान गरीबों को देना अनिवार्य है। कहा गया है कि इसको इतना पहले दे देना चाहिए कि जरूरतमंद, गरीब और अनाथ भी अपने जरूरत का सामान वगैरा ले लें और सब के साथ ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। यानी ईद एकलौता ऐसा त्यौहार है जो पूरा ही तब होता है जब हम जकात और फितरा के जरिए जरूरतमंदों, गरीबों और अनाथों की मदद करते हैं। ज़कात एक ऐसी व्यवस्था है जिससे दौलत अमीरों से गरीबों की तरफ ट्रांसफर होती है, गरीबों का उत्थान होता है। जब देश में रहने वाला गरीब वर्ग सशक्त होगा, तभी कोई देश विकास कर सकता है। हम जरा सोचें, यदि ज़कात व्यवस्था के अन्तर्गत संपन्न लोग ढाई प्रतिशत जकात गरीबों को देना शुरू कर दें, तो क्या गरीब और परेशान अशिक्षित रह सकता है? कोई बिना दवा इलाज के मर सकता है? कभी कोई भूखा सो सकता है? कभी नहीं।

 

इस्लाम की शिक्षाएं बहुव्यापी हैं, यदि उन पर अमल किया जाए तो हर किसी के दुख सुख में बदल जाएंगे। और फिर हर इंसान सुख और शांति को महसूस करेगा, समाज में एकता कायम होगी, भाईचारे का माहौल पैदा होगा, दर हकीकत यही ईद का पैगाम है जो हर साल यही बात याद दिलाने आती है।

मुहम्मद शुकरुल्लाह


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